छोड कोमल फूल का घर, ढूंढती हूं निर्झर। पूछती हूं नभ धरा से- क्या नहीं र्त्रतुराज आया?
ंमैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत, मैं अग-जग का प्यारा वसंत।
मेरी पगध्वनी सुन जग जागा, कण-कण ने छवि मधुरस मांगा।
नव जीवन का संगीत बहा, पुलकों से भर आया दिगंत।
मेरी स्वप्नों की निधि अनंत, मैं र्त्रतुओं में न्यारा वसंत।