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"Aadarsh Prem," by Dr. Harivansh Rai Bachchan
annotated by Maykala Hariharan and Aditya Sachan
प्यार
किसी को करना लेकिन
कहकर
उसे बताना कया |
अपने को अपर्ण
करना पर
और को अपनाना
क्या |
गुण का ग्राहक बनना लेकिन
गाकर उसे सुनाना क्या |
मन के कल्पित भावों से
औरों
को भ्रम
में लाना क्या |
ले लेना सुगन्ध सुमनों की
तोड़ उन्हें मुरझाना क्या |
प्रेम हार पहनाना लेकिन
प्रेम पाश
फैलाना क्या |
त्याग
अंक में पले प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ
बताना क्या |
देकर ह्रदय
ह्रदय पाने की
आशा
व्यर्थ
लगाना क्या |
"Kya Bhuloon"
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
अंगणित
उन्मादों के क्षण
हैं,
अंगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी
घडियों
को किन-किन से आबाद
करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
याद सुखों
की आंसू
लाती,
दुख
की, दिल
भारी
कर जाती,
दोष
किसे दूं जब अपने
से अपनए दिन बर्बाद
करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
दोनों करके पछताता हूं,
सोच नहीं, पर मैं पाता हूं,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूं मैं!
क्या भूलूं, क्या याद करूं मैं!
"Mujhe Pukar Lo"
इसीलिए
खडा
रहा कि तुम
मुझे पुकार
लो!
जमीन
है न बोलती
न आसमान
बोलता,
जहान
देखकर
मुझे नहीं जबान
खोलता,
नहीं जगह कहीं जहां न अजनबी
गिना
गया,
कहां-कहां
न फिर
चुका दिमाग-दिल
टटोलता,
कहां मनुष्य
है कि जो उमीद
छोडकर
जिया,
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
तिमिर - समुद्र
कर
सकी न पार
नेत्र
की तरी,
विनिष्ट
स्वप्न
से
लदी, विषाद
याद
से भरी,
न कुल
भुमि का मिला, न कोर भोर की मिली,
न
कट सकी, न
घट सकी विरह - घिरी विभावरी,
कहां मनुष्य है जिसे कमी
खली
न प्यार
की,
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
उजाड
से लगा
चुका उमीद
मैं बहार
की,
निदाघ से उमीद
की बसंत
के बयार की,
मरुस्थली
मरिचिका
सुधामयी मुझे लगी,
अंगार
से लगा चुका उमीद मैं तुषार की,
कहां मनुष्य है जिसे न भूल
शूल-सी
गडी,
इसीलिए खडा रहा कि भूल तुम सुधार
लो!
इसीलिए खडा रहा कि तुम मुझे पुकार लो!
पुकार लो दुलार लो, दुलार कर सुधार लो!
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